एक आदमी आत्म-आनंद में लिप्त होता है, अपने बड़े डिक को नंगे पैर मारता है । प्रत्याशा तब तक बनती है जब तक कि वह अपना भार नहीं उड़ा देता, जिससे वह संतुष्ट और बेदम हो जाता है ।